लखनऊ: 13 जनवरी से शुरू होने जा रहे महाकुंभ में महज कुछ ही दिन बचे हैं। हर 12 साल में एक विशेष स्थान पर आयोजित होने वाला यह महाकुंभ लाखों-करोड़ों साधु-संतों और श्रद्धालुओं का आकर्षण बनता है, जो पवित्र नदियों में स्नान करते हैं। कुंभ में स्नान करने से पापों का नाश और मोक्ष की प्राप्ति की मान्यता है। इस पावन अवसर पर श्री पंचायती आनंद अखाड़ा के अध्यक्ष महंत शंकारानंद सरस्वती ने आईएएनएस से विशेष बातचीत की।
अखाड़ों का विशेष महत्व
भारत के 13 प्रमुख अखाड़ों में से एक आनंद अखाड़ा है, जिसका महाकुंभ के दौरान विशेष महत्व होता है। शंकारानंद सरस्वती के अनुसार, श्री पंचायती आनंद अखाड़ा का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है और इसकी स्थापना लगभग 855 ईस्वी में महाराष्ट्र के बरार स्थान पर हुई थी।
अखाड़े के नागा संन्यासियों का गौरवपूर्ण इतिहास
आनंद अखाड़े के नागा संन्यासियों का गौरवपूर्ण इतिहास है, जिन्होंने बाहरी आक्रांताओं के खिलाफ ना सिर्फ आवाज उठाई, बल्कि भारतीय धार्मिक सनातन परंपरा की रक्षा भी की। इन साधुओं ने अपने प्राणों का बलिदान भी दिया।
अखाड़े के इष्ट देव सूर्य नारायण भगवान
आनंद अखाड़े के इष्ट देव सूर्य नारायण भगवान हैं और यह दशनामी संन्यास परंपरा का पालन करता है। यहां संन्यास देने की प्रक्रिया भी कठिन होती है। संन्यास दीक्षा कुंभ या महाकुंभ में दी जाती है, जिसमें पिंडदान कर यह प्रक्रिया पूरी होती है।
आनंद अखाड़ा और निरंजनी अखाड़ा
आनंद अखाड़ा को निरंजनी अखाड़े का छोटा भाई भी कहा जाता है। यह अखाड़ा कुंभ और महाकुंभ जैसे पर्वों पर निरंजनी अखाड़े के साथ अपनी पेशवाई निकालता है।
कुंभ में स्नान का विशेष महत्व
कुंभ में स्नान का धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्व है। शंकारानंद सरस्वती ने बताया कि कुंभ में स्नान करने से करोड़ों जन्मों के पापों से मुक्ति मिलती है। गंगा के दर्शन मात्र से ही मुक्ति मिल जाती है। उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार की व्यवस्थाओं पर टिप्पणी करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अखाड़ों और संतों को पर्याप्त सुविधाएं प्रदान की हैं।
आधुनिक समय में आनंद अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी बालकानंद गिरी महाराज हैं, और महंत शंकारानंद सरस्वती इसके अध्यक्ष हैं। इस अखाड़े के सभी धार्मिक और प्रशासनिक मामलों का संचालन आचार्य द्वारा किया जाता है।